Tuesday 14 June 2016

"स्त्री की आजादी" कथा की समीक्षा।

"साहित्यिक बगिया" पर  आरती तिवारी द्वारा  लिखी "स्त्री की आजादी" नामक कथा लगायी गयी जो समसामयिक परिवेश में स्त्रियों के निकृष्ट सोच पर प्रहार करती है।
कथा पर गीतांजलि शुक्ला , प्रकाश सिन्हा ,मणि मोहन मेहता , निशि शर्मा "जिज्ञासु" ,शरद कोकास , प्रियंका शर्मा , आभा खरे , आकाशदीप , अभिषेक द्विवेदी "खामोश" , एम एम चन्द्रा , अरूण शीतांश , आकांक्षा मिश्रा , नरेश मेहता , कुंवर इन्द्रसेन , सुरेन्द्र कुमार "सुरेन" सुशीला जोशी  और विमल चन्द्राकर ने कथा पर अपने विचार रखे।
गीतांजलि  ने आरती तिवारी जी इस को बेहतर कथा कहा।
    मणि मोहन  ने कहा कि यह कथा स्त्री विमर्श के नाम पर चल रहे ढोंग का पर्दाफाश करती है साथ यह भी माना आज ऐसा पर्दाफाश करना आवश्यक भी है।निशि शर्मा  ने कहा कि आरती जी कथा के माध्यम से शुक्ला जैसे धनिक की कामुकता और दोहरे चरित्र की बखिया उधेड़ना जरूरी है।पात्रों स्त्रियों की आजादी को अपने नजरिये से थोपना, कथनी और करनी में भेद को आईना दिखाना जरूरी है।
         प्रकाश सिन्हा  ने कहा कि समाज में विचारों का कितना दोगलापन है, आरती जी कथा से साफ दिखता है। कथा में बहुत प्रेम चन्द के गोदान में चल रही बहस काम जिक्र सा मिलता है।
शरद कोकास  ने कहा कि इस कथा में पुरूष की वासना कथा का केन्द्र है जिस पर एक अच्छी मनोविज्ञानिक कहानी लिखी जा सकती है।
 प्रियंका ने कहा कि -"आज के समाज में व्याप्त राजनैतिक परिवेश को लेकर लिखी गयी है।लघुकथा में सांस्कृतिक संगोष्ठियों कार्यक्रमों के आयोजन पर भी प्रकाश डाला गया है।कैसे आये दिन आज एक से एक आयोजन  होते रहते हैं।
आव भगत, भोजन- पानी, नाश्ते केस इंतजाम कवि कवयित्री को निमन्त्रण सब आज केस परिवेश में सहज ही सत्यता से देखे सुने पाये जाते हैं।लेखिका ने स्त्री की दशा पर बहुत बारीकी से अध्ययन जारी किया है शुक्ला जी जैसे कथित आद्रा शांडिल्य पुरूषों के पुरूषार्थ उनकी मानसिकता को बहुत खूबसूरती से आज के परिवेश में बाहर लाया जा सका है।उनकी घूरती खा जाने वाली निगाहों के द्वारा उनके चरित्र के घिनौने रूप को आम जनमानस के बीच बेबाक ढंग से रखा जान सका है।केवल दैहिक सौन्दर्य के इस पुजारी से बचने का संकेत साफगोई से देखा समझा सकता है।
एक तरफ कैसे वो दूसरे की बहु बेटियों पर गंदी नीयत से देखता और अपने घर की स्त्रियों को घर में कैद रखने की बात करता।लघुकथा में उनकी इस घटिया सोच का खुलासा होने पर स्त्री का प्रतिकार,और संगोष्ठी का बहिष्कार सभी के द्वारा भोजन त्याग उचित अन्त लाता है।
आभा खरे ने आगे कहा कि- "प्रस्तुत कथा का विषय अच्छा है लेकिन लघुकथा लेखन के फार्मेट और ट्रीटमेंट को लेकर मैं शरद कोकस जी से सहमत हूँ"।
आकाश  ने कहा कि आरती की लिखित कथा बडी ही बारीकी से सामाजिक वर्जनाओं व रूढ़ियों को प्वाईन्ट आऊट करती है।अभिषेक द्विवेदी ने कहा कि कथानक का उचित प्रस्तुतिकरण ही इसकी उपलब्धि है। स्त्री की आजादी एक ऐसा विषय है जिस पर पुरुष बात तो करना चाहते है। पर अपने घर परिवार से इतर।
एम एम चन्द्रा  ने कथा के विषयक अपनी बात रखते हुये कहा कि "यह उन लोगो  की कहानी है जो अपने संसाधनों के दम पर साहित्य में घुसपैठ करते है. यह  आज के तथाकथित साहित्य की एक अलग तरह कि दुनिया है जो हमारे सामाज में अब बहुत ज्यादा दिखाई दे रही है."कहानी  में महिला विमर्श के पैरोकार  ही सबसे ज्यादा अपने घर की महिलाओं को इतनी भी आजादी नहीं देते, साहित्यकार अपने मित्रों  के सामने कोई बात कर सके. इस कहानी की विषय वस्तु का चयन एकदम ठीक है किन्तु उसका शिल्प संवाद शेली में  होता तो अधिक चौट करती।
    नरेश भारती  ने कथा को बेहतरीन व स्तरीय बताया।वही आकांक्षा ने कहा  कि यह स्त्री विमर्श को मुद्दा बनाकर लिखी गयी है।
कथा की समीक्षा करते हुये मंच के  संचालक विमल चन्द्राकर ने कहा कि "कथा का विषय बहुत रोचक है। कथ्य भी शानदार बन पड़ा है, लेखिका ने शुक्ल जी के पात्र को लेकर आज के समाज के एक दकियानूसी परम्परा को लेकर आम जन मानस के मध्य कई सवाल उठाये हैं।आज के राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक आयोजन, संगोष्ठियों और बैठकों में कैसे एक पुरूष अपनी पद प्रतिष्ठा और रूतबे को कायम करने का स्वांग  रचते हुये काव्य सम्मेलन के आयोजन में साहित्यकारों कवि कवयित्रियों का जमावड़ा लगवाता है और रह रह कर एक टक उनसे जिस्म को खा जाने वाली दृष्टि से देखता है।यह सम्मेलन में आयी प्रत्येक महिला की सिकुडन व झुकी नजरे कहने को पर्याप्त हैं।
आरती

 ने शुक्ला जी के चरित्र के माध्यम ऐसी सोच रखने वाले, निकृष्ट ओछी विचार धारा के लोगों का धूर्ततम चेहरा बेनकाब करने का सजग प्रयास किया है।
एक पाठक के तौर पर यही मानता हूं कि आज के समाज की प्रत्येक स्त्री को शुक्ल जी जैसे लोगो की घूरती निगाहों से स्वयं को सुरक्षित करने, आवश्यकता पडने पर भरपूर विरोध करना ही होगा।
साथ ही मंच पर सभी के द्वारा विचार विधि टिप्पणी देने के लिये उन्सोने सभी को साहित्यिक बगिया की ओर से आभार भी व्यक्त किया।

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा चन्द्रा साहब।
    बगिया के लिए शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सुन्दर समीक्षा चन्द्रा साहब।
    बगिया के लिए शुभकामनाएं।

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  3. आभार विमल मेरी कहानी यहाँ शेएर की

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