
जैसे जिनके धनुष मारक कविताओं का दस्तावेज . पहली ही कविता 'घर' न केवल चमत्कृत करती है बल्कि आश्वस्त भी कि कवि की दूरदृष्टि से कुछ नहीं बचा . दीखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर वाली कवितायें अपने आप में एक विस्तृत वितान लिए हैं . जहाँ शब्दों का बेहिसाब खर्च नहीं बल्कि सदुपयोग हुआ है . कैसे कम शब्दों में गहरी बात कही जा सकती है ये जानने के लिए पाठक को इस संग्रह को पढना ही चाहिए . आपका कवि साहसी ही नहीं दुस्साहसी है जिसका आजकल अभाव है लेकिन इतनी हिम्मत रखना ही कवि को अन्यों से अलग करता है . प्रकृति को माध्यम बनाए चाहे इंसान को कवि की सोच आईने की तरह साफ़ है , निडर है , और शायद यही है कवि का सच्चा कवित्व . किस कविता की तारीफ़ की जाए और किसे छोड़ा जाए पाठक मन निर्णय नहीं कर पायेगा क्योंकि हर कविता चंद शब्दों में इतनी गहरी मार करती है कि बचना नामुमकिन है , इसलिए किसी एक कविता पर विचार रखना अन्य कविताओं के साथ अन्याय होगा . इसका स्वाद तो कोई पाठक मन पढ़कर ही जान सकता है . आप बधाई के पात्र हैं और उम्मीद करती हूँ आपकी आगे भी ऐसी ही कवितायेँ पढने को मिलती रहेंगी .
अंत में आभारी हूँ माया मृग जी की जो एक लाजवाब कविता संग्रह उपलब्ध करवा मेरा मान बढाया .
पुस्तक समीक्षा पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार
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