Saturday 15 August 2015

समाजवाद के मूल सिद्धांतों की झलक : ‘समाजवाद का ककहरा’


समाजवाद का ककहरा के लेखक लियो हूबरमन वामपंथी बुद्धिजीवियों के लिए नहीं, बल्कि सुधी पाठकों के लिए भी सुपरिचित नाम है। मशहूर पुस्तक मैन्स वर्ल्डली गुड्स का हिन्दी अनुवाद ‘मनुष्य की भौतिक सम्पदाएँ’ गार्गी प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और पाठकों ने इसे काफी सराहा है। न्यूयार्क से प्रकाशित पत्रिका ‘मंथली रिव्यू’ के संस्थापक संपादक के रूप में समाजवाद के प्रचार–प्रसार में उनका अनुपम योगदान रहा है।

                         
वामपंथी प्रचार के बारे में अपने बहुमूल्य लेख में लियो हूबरमन ने समाजवादी विचारों के प्रचार-प्रसार की सही शैली के बारे में जो प्रस्थापनाएं दी हैं उनका अनुसरण करते हुए लियो ने इस पुस्तिका में बहुत ही बौधगम्यशैली अपनायी है। उनका मानना था कि “सच्चाई हमारे पक्ष में हैं। समाजवादी प्रचारकों का काम उस सच्चाई को सुस्पष्ट और अत्यंत स्वीकार्य रूप में प्रस्तुत करना है।... भारी भरकम शब्दावली और गली–गलौच न तो किसी विषय को स्पष्ट करते हैं और न ही उसे स्वीकार्य बनाते हैं। वामपंथी जुमलेबाजी जैसे ‘फासीवादी नरपशु’ या ‘साम्राज्यवाद का पालतु कुत्ता’ काम के बोझ से लदे वाम पंथी लेखकों के लिए आसन तरीका हो सकता है, लेकिन इसका उन लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं जो पहले से ही मनोहर वामपंथी दायरे में शामिल न हुए हों।... जब तथ्य इतना चीख-चीख कर और इतने स्वीकार्य रूप से हमारी बात कह रहे हों तो भला बढ़ाचढ़ा कर या तोड़-मरोड़ कर कहने की जरूरत ही क्या है?” (मंथली रिव्यू, सितम्बर 1950)
इस पुस्तक में समाजवाद के मूल सिद्धांतों को अमरीकी समाज की सच्चाइयों के आधार पर बहुत ही तार्किक, सुस्पष्ट और कायल बनाने वाली शैली में प्रस्तुत किया गया है।

गार्गी प्रकाशन से प्रकाशित लेखक लियो ह्यूबरमन की ‘समाजवाद का ककहरा’ पुस्तक आप सभी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। इस पुस्तक का अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा में अनुवाद पारिजात ने किया है।

समाजवाद का ककहरा | लियो ह्यूबरमन | अनुवाद : पारिजात | अर्थशास्त्र | ISBN : 81-87772-29-8 | पेपरबैक संस्करण | कीमत 45 रुपये

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